इजराइली दूतावास के बाहर धमाके के बाद लोग जानना चाहते होंगे, आखिर क्या है मोसाद!
दिल्ली में इजराइली दूतावास के बाहर शुक्रवार शाम बम विस्फोट हुआ तो जांच भी शुरू हो गई। दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम और खुफिया एजेंसियां मामले की जांच में जुट गईं। कड़ी से कड़ी जोड़ी जा रही है। भारतीय एजेंसियों के साथ इजराइली जांच एजेंसी “मोसाद” भी शामिल हो गई। लोग जानना भी चाहते होंगे mosad है और इस खुफिया एजेंसी के कारनामे!
कब हुई मोसाद की स्थापना-
13 दिसंबर, 1949 को इस्राइल के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड बेन-गूरियन की सलाह पर मोसाद की स्थापना की गई थी। वे चाहते थे कि एक केंद्रीय इकाई बनाई जाए जो मौजूदा सुरक्षा सेवाओं- सेना के खुफिया विभाग, आंतरिक सुरक्षा सेवा और विदेश के राजनीति विभाग के साथ समन्वय और सहयोग को बढ़ाने का कार्य करे। 1951 में इसे प्रधानमंत्री के कार्यालय का हिस्सा बनाया गया इसके प्रति प्रधानमंत्री की जवाबदेही तय की गई।

मोसाद के बड़े ऑपरेशन-
20 साल लगे, लेकिन चुन-चुन कर मारा-
1972 में म्यूनिख ओलंपिक के दौरान इजरायल टीम के 11 खिलाड़ियों को उनके होटल में मार दिया गया। इसके बाद मोसाद ने संदिग्धों की हिट लिस्ट बनाई। फिल्मी स्टाइल में उड़ती हुई कारें, फोन बम, नकली पासपोर्ट, जहर की सुई सभी का इस्तेमाल किया। कई देशों का प्रोटोकॉल तोड़ कर अपराधियों को चुन-चुन कर मारा। 20 साल चले इस ऑपरेशन में एजेंसी टारगेट के परिवार को एक बुके भेजती थी। उस पर लिखा होता था- ‘ये याद दिलाने के लिए कि हम ना तो भूलते हैं, ना ही माफ करते हैं।’
21 साल बाद महमूद अल मबूह की हत्या-
मोसाद ने अल मबूह से 21 साल पुराना बदला लेते हुए उसकी 19 जनवरी 2010 को दुबई के होटल अल बुस्तान रोताना में हत्या कर दी थी। मबूह हमास के लिए हथियार की खरीद-बिक्री किया करता था। एजेंसी ने उसके पैरों में सक्सिनीकोलीन का इंजेक्शन दिया था, जिससे वह पैरालाइज्ड (लकवा) हो गया। इसके बाद उसके मुंह पर तकिया रखकर उसकी हत्या कर दी गई। अल मबूह फिलिस्तीनी ग्रुप हमास के मिलिट्री विंग का संस्थापक था। उस पर 1989 में दो इजराइली सैनिकों को मारने का आरोप था।
यासिर अराफात के सहयोगी को मारीं 70 गोलियां-
मोसाद की हिट लिस्ट में शामिल फिलिस्तीन के नेता यासिर अराफात का दाहिना हाथ माने जाने वाला खलील अल वजीर उर्फ अबू जिहाद ट्यूनीशिया में रह रहा था। उसके खात्मे के लिए 30 एजेंट काम पर लगे। वे पर्यटक बनकर ट्यूनीशिया पहुंचे। कुछ ट्यूनिशिया सेना की वर्दी में भी थे। इस दौरान शहर के ऊपर मंडराते इजरायल के जहाज बोइंग 707 ने वहां के संचार माध्यमों को ब्लॉक कर दिया। फिर एजेंटों ने अबू के घर में दाखिल होकर पहले नौकरों को मारा, फिर परिवार के सामने अबू को 70 गोलियां मार कर मौत के घाट उतार दिया।
चुरा लिया रूस का मिग-21 लड़ाकू विमान-
60 के दशक में सबसे उन्नत और तेज रूस के मिग-21 लड़ाकू विमान को पाने में अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA असफल रही। जिम्मेदारी मिलने पर पहली और दूसरी कोशिश नाकाम होने के बाद भी mosad ने हार नहीं मानी। आखिरकार 1964 में उसे सफलता मिली। महिला एजेंट ने एक इराकी पायलट को इस विमान के साथ इजरायल लाने के लिए मना लिया था।
महिला एजेंट की मदद से दबोचा मौर्डेखाई वनुनु
इजराइल के गुप्त परमाणु कार्यक्रम के बारे में दुनिया को बताने वाले शख्स का नाम था मौर्डेखाई वनुनु। इसके लिए गुप्त अभियान के तहत एक महिला जासूस को उसे प्रेम जाल में फंसाने के लिए भेजा गया। वह उसे लंदन से यॉट में बैठा कर इटली के समंदर में ले आई। वहां से मोसाद के एजेंटों ने वनुनु को अगवा कर लिया। फिर इजराइल में मुकदमा चला कर सजा दी गई।
ऑपरेशन थंडरबोल्ट-
27 जून 1976 को रात के 11 बजे एयर फ्रांस की एयरबस ए300 वी4-203 ने इजरायली शहर तेल अवीव से ग्रीस की राजधानी एथेंस के लिए उड़ान भरी। विमान में 246 यात्री और 12 क्रू मेंबर सवार थे। इसमें सवार ज्यादातर यात्री यहूदी और इजरायली नागरिक थे। अरब के आतंकी विमान को कब्जे में ले कर पेरिस की बजाय लीबिया के शहर बेंगहाजी ले गए और विमान में ईंधन भरा। इसके बाद वे विमान को लेकर युगांडा के एंतेबे हवाई अड्डे पहुंचे। तब मोसाद ने दुनिया को अपनी ताकत दिखाते हुए 94 नागरिकों को सुरक्षित वापस निकाल लिया। इस ऑपरेशन में वर्तमान में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के भाई जोनाथन नेतन्याहू भी शामिल थे, हालांकि ऑपरेशन के दौरान गोली लगने से उनकी मौत हो गई थी।

हिटलर के खास आइकमैन को फांसी-जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने बड़ी तादाद में यहूदियों की हत्या की थी। इसके लिए हिटलर को जरूरी सामान एडोल्फ आइकमैन ने उपलब्ध करवाया था। मोसाद ने 1960 में अर्जेंटीना से आइकमैन का अपहरण किया और उसे लेकर इजराइल ले गए। 11 अप्रैल 1961 को उस पर 60 लाख यहूदियों की मौत की साजिश में शामिल होने को लेकर मुकदमा चलाया गया। आठ महीनों तक चले मुकदमे के बाद उसे दिसंबर 1961 में मौत की सजा सुनाई गई। मई 1962 में उसे फांसी पर लटका दिया गया और उसकी अस्थियों को समुद्र में फेंक दिया गया।