स्वामी ओमवेश मुस्लिम समाज के खैरख्वाह तो हो सकते हैं लेकिन मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं!

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स्वामी ओमवेश मुस्लिम समाज के खैरख्वाह तो हो सकते हैं लेकिन मुस्लिम प्रतिनिधि नहीं —मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”

स्वामी ओमवेश

उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे गली-नुक्कड़ों और चौपालों पर चाय की चुस्कियों के साथ राजनीतिक चर्चाओं का दौर जारी है।
जिला बिजनौर की चांदपुर विधानसभा-23 में भी आजकल विभिन्न दलों के भावी उम्मीदवारों को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है। इसी क्रम में समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व गन्ना मंत्री स्वामी ओमवेश पर विभिन्न राजनीतिक पंडित अपना-अपना गणित लगा रहे हैं।

शेरबाज पठान


स्वामी ओमवेश अवसरवादी राजनीति के एक माहिर खिलाड़ी हैं। 1993 में समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष पद से राजनीतिक गलियारों में चर्चा में आये स्वामी जी ने 1996 में पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा चुनाव लड़ा था। जिसमें वह 54,124 वोट लेकर वह विधानसभा पहुंचे थे। जिसमें सबसे बड़ा योगदान मुस्लिम समाज का था। 2002 में उन्होंने टिकट प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय लोकदल का दामन थाम लिया और रालोद उम्मीदवार के रूप में वह 60, 595 वोट लेकर पुनः विधानसभा पहुंचे। इस बार वह लोकनिर्माण मंत्री बने लेकिन बाद में गठबंधन टूट गया और सपा-रालोद ने मिलकर सरकार बनाई जिसमें वह गन्ना राज्यमंत्री बन गए। इस दौरान उनका राजनीतिक कद और लोकप्रियता बहुत अधिक बढ़ गई थी। लेकिन 2007 और 2012 में उन्हें लगातार दो बार हार का मुहं देखना पड़ा था। इसके बाद वह सरदार बीएम सिंह की पार्टी “राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन” में प्रदेशाध्यक्ष के पद पर शामिल हो गए लेकिन यह साथ भी ज़्यादा समय नहीं चल सका और उन्होंने कुछ समय के लिए स्वामी रामदेव का दामन थाम लिया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि स्वामी रामदेव का साथ केवल दिखावा था जबकि सच यह है कि स्वामी ओमवेश बैकडोर से भाजपा के टिकट की तैयारी में थे, लेकिन यहाँ भी बात नहीं बन पाई और अंततः स्वामी जी ने समाजवादी पार्टी में पुनर्वापसी कर ली। और आजकल वह समाजवादी पार्टी के टिकट के सबसे सशक्त दावेदार माने जा रहे हैं।
एक समय था जब स्वामी ओमवेश को मुस्लिम समाज का मज़बूत समर्थन हासिल था और 1996 में मुस्लिम मतों के बलबूते पर ही वह चुनाव जीत पाए थे। लेकिन 2002 में मौहम्मद इक़बाल के राजनीति में प्रवेश के पश्चात स्वामी जी की मुस्लिम समाज में पकड़ थोड़ी कमज़ोर हो गई।

मौहम्मद इक़बाल

2007 में मौहम्मद इक़बाल की जीत के बाद तो चांदपुर विधानसभा की मुस्लिम राजनीति में मौहम्मद इक़बाल का एकछत्र राज हो गया। और इसी बीच 2012 विधानसभा चुनाव में सपा प्रत्याशी के रूप में शेरबाज पठान के आगमन के बाद क्षेत्र की मुस्लिम राजनीति में स्वामी जी का नाम लगभग गायब सा हो गया। इसके बाद 2017 में मौहम्मद अरशद ने सपा का टिकट लेकर मुस्लिम राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा लेकिन अब एक बार फिर से चांदपुर क्षेत्र के मुस्लिम समाज में स्वामी जी का नाम सामने आ रहा है। लेकिन इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि मुस्लिम समाज के सामने अभी तक कोई दूसरा मज़बूत विकल्प नहीं है। यहां यह भी स्पष्ट करना चाहेंगे कि मुस्लिम समाज स्वामी ओमवेश को अपना हमदर्द तो मानता है, लेकिन प्रतिनिधि नहीं मान सकता। दूसरे शब्दों में कहें तो स्वामी ओमवेश मुस्लिम समाज के खैरख्वाह तो हो सकते हैं लेकिन मुस्लिम प्रतिनिधि कभी नहीं बन सकते। वर्तमान में मुस्लिम प्रतिनिधि में मौहम्मद इक़बाल, शेरबाज पठान और कुछ हद तक मौहम्मद अरशद और डॉ. शकील हाशमी का नाम भी लिया जा सकता है।
इसलिए जो लोग यह शोर मचाते घूम रहे हैं कि मुस्लिम समाज का एकमुश्त समर्थन स्वामी ओमवेश को ही मिलेगा, वह यह भूल रहे हैं कि सही मायने में अभी तक किसी मज़बूत मुस्लिम उम्मीदवार ने ताल नहीं ठोंकी है। इसलिए स्वामी ओमवेश सबकी आंख का तारा बने हुए हैं।
मुस्लिम समाज का वास्तविक रुख़ तब सामने आएगा जब मौहम्मद इक़बाल या शेरबाज पठान जैसे सलामी बल्लेबाज मैदान में बल्ला लेकर उतरेंगे। अभी तो तेल देखो, और तेल की धार देखो।

🖋️ मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
समाचार सम्पादक- उगता भारत हिंदी समाचार-
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Published by Sanjay Saxena

पूर्व क्राइम रिपोर्टर बिजनौर/इंचार्ज तहसील धामपुर दैनिक जागरण। महामंत्री श्रमजीवी पत्रकार यूनियन। अध्यक्ष आल मीडिया & जर्नलिस्ट एसोसिएशन बिजनौर।

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