
12 साल की उम्र में छोड़ा था घर। अशोक चोटिया से आनंद गिरि तक की पूरी कहानी
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गयी थी। पुलिस को मौके पर कथित सुसाइड नोट भी बरामद हुआ था। सुसाइड नोट में आनंद गिरि पर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे। नरेंद्र गिरि ने कथित सुसाइड नोट में लिखा था कि आनंद गिरि उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहा था। पुलिस ने इसके आधार पर आनंद गिरि को पहले हिरासत में लिया और फिर गिरफ्तार कर लिया था।आनंद गिरि को शिक्षा महंत नरेंद्र गिरि ने ही दी थी। कुछ विवाद होने के बाद आनंद गिरि को अखाड़े से बाहर कर दिया गया था।
अशोक चोटिया से लेकर आनंद गिरि बनने तक की कहानी
प्रयागराज बाघंबरी मठ के महंत नरेंद्र गिरि की संदिग्ध परिस्थितियों हुई मौत के मामले में गिरफ्तार आनंद गिरि का नाता राजस्थान के भीलवाड़ा से है।आनंद का असली नाम अशोक चोटिया है। खुद को घुमंतू योगी बताने वाले आनंद गिरि का राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के आसींद तहसील में ब्राह्मणों के गांव सरेरी में पैतृक आवास है। आनंद की शुरुआती पढ़ाई भीलवाड़ा में ही हुई थी। आनंद के परिवार में पिता रामेश्वरलाल किसान, तीन बड़े भाई और एक छोटी बहन है। आनंद की मां नानू देवी का निधन हो चुका है। पिता गांव में ही खेती करते हैं। एक भाई सरेरी गांव में ही सब्जी का ठेला लगाते हैं और दो भाई सूरत में कबाड़ का काम करते हैं। सरेरी गांव आनंद को एक अच्छे संत के रूप में जानता है और शांत और शालीन स्वभाव का बताया जाता है। आनंद के पैतृक आवास के पास ही एक चारभुजा मंदिर है। बचपन से ही आनंद इस मंदिर में पूजा-अर्चना के लिए जाया करते थे। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले आनंद 1996 में 12 साल की उम्र में घर बार छोड़छाड़ कर हरिद्वार चले गए थे।
आनंद की एक संत के जरिए पहली बार नरेंद्र गिरि से मुलाकात हुई थी। नरेंद्र गिरि ने अशोक को अपना शिष्य बना लिया था और साल 2000 में अशोक ने संन्यास लेने का फैसला किया था। इसके बाद आनंद ने बाघंबरी मठ को ही अपना ठिकाना बना लिया और नरेंद्र गिरि को अपना गुरु।
परिवार वालों को इसकी जानकारी भी नहीं थी कि वो आखिर कहां गए। बाद में परिजनों को जानकारी मिली कि वो हरिद्वार हैं। उनके पिता वहां पहुंचे, लेकिन तब तक आनंद नरेंद्र गिरि के आश्रम में पहुंच कर उनके शिष्य बन गए थे। 2012 में महंत नरेंद्र गिरि के साथ अपने गांव भी आए थे। नरेंद्र गिरि ने उनको परिवार के सामने दीक्षा दिलाई और वो अशोक चोटिया से आनंद गिरि बन गए। आनंद संत बनने के बाद दो बार गांव गए। पहली बार दीक्षा लेने के लिए और इसके बाद पांच महीने पहले, जब उनकी मां का निधन हो गया था। इस दौरान गांव के लोगों ने आनंद की काफी सेवा की थी। अचानक से महंत नरेंद्र गिरि की मौत के बाद उन पर लगे आरोपों से पूरा सरेरी गांव सकते में है।
आनंद शक के दायरे में इसलिए हैं, क्योंकि नरेंद्र गिरि से उनका विवाद काफी पुराना था। इसकी वजह बाघंबरी गद्दी की 300 साल पुरानी वसीयत है, जिसे नरेंद्र गिरि संभाल रहे थे। कुछ साल पहले आनंद गिरि ने नरेंद्र गिरि पर गद्दी की आठ बीघा जमीन 40 करोड़ में बेचने का आरोप लगाया था। इसके बाद विवाद गहरा गया था। आनंद ने नरेंद्र पर अखाड़े के सचिव की हत्या करवाने का आरोप भी लगाया था। (साभार)