लखनऊ (शैली सक्सेना)। पांच दिवसीय दीपावली पर्व श्रृंखला में शुक्रवार को गोवर्धन पर्व मनाया गया। लोगों ने अपने घर में गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर उसे फूलों से सजाया। गोवर्धन पर्वत के पास ग्वाल-बाल और पेड़ पौधों की आकृति भी बनाई। इसके बीच में भगवान कृष्ण की मूर्ति रख कर षोडशोपचार विधि से पूजन किया। लोगों ने गोवर्धन पूजा सुबह और शाम के समय मुहूर्त के अनुसार की। इस अवसर पर भगवान को तरह-तरह के पकवानों का भोग लगाने के साथ ही गोवर्धन पूजा की व्रत कथा सुन कर प्रसाद वितरित किया गया।

गोवर्धन पूजा का महत्व: मान्यता के अनुसार गोवर्धन पूजा करने से धन, संतान और गौ रस की वृद्धि होती है। प्रकृति और भगवान श्री कृष्ण को समर्पित इस पर्व के दिन कई मंदिरों में धार्मिक आयोजन और अन्नकूट यानी भंडारे होते हैं। पूजन के बाद लोगों में प्रसाद बांटा जाता है। इस दिन आर्थिक संपन्नता के लिए गाय को स्नान कराकर उसका तिलक किया जाता है। गाय को हरा चारा और मिठाई खिलाने के बाद गाय की 7 बार परिक्रमा की जाती है। इसके बाद गाय के खुर की पास की मिट्टी एक कांच की शीशी में लेकर उसे अपने पास रख लिया जाता है।मान्यता है ऐसा करने से धन-धान्य की कभी कमी नहीं होगी।

गोवर्धन पूजा की शुरुआत- गोवर्धन पूजा को लोग अन्नकूट पूजा के नाम से भी जानते हैं। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का विधान है। इस दिन गोवर्धन पर्वत, गोधन यानि गाय और भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है। इसके साथ ही वरुण देव, इंद्र देव और अग्नि देव आदि देवताओं की पूजा का भी विधान है। गोवर्धन पूजा में विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित किया जाता है, इसी वजह से इस उत्सव या पर्व का नाम अन्नकूट पड़ा है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार द्वापर युग में जब इंद्र ने अपना मान जताने के लिए ब्रज में तेज बारीश की थी तब भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों की मूसलाधार बारिश से रक्षा की थी। जब इंद्रदेव को इस बात का ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं तो उनका अहंकार टूट गया। इंद्र ने भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। गोवर्धन पर्वत के नीचे सभी गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सुख पूर्वक और बारिश से बचकर रहे। कहा जाता है तभी से गोवर्धन पूजा मनाने की शुरुआत हुई।
