बिजनौर। आज रविवार से चातुर्मास प्रारंभ हो गए हैं। ज्योतिषविदों के अनुसार आज देवशयनी एकादशी से चार माह के लिए मांगलिक कार्य निषेध रहेंगे। इस अवधि में मुंडन संस्कार, विवाह, तिलक, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश आदि शुभ कार्य वर्जित होते हैं। चार माह बाद देवोत्थान एकादशी को श्री हरि विष्णु के योग निंद्रा से बाहर आने के साथ ही चातुर्मास का समापन होगा।

सिविल लाइन्स स्थित धार्मिक संस्थान विष्णुलोक के ज्योतिषविद पंडित ललित शर्मा ने बताया, कि चातुर्मास 10 जुलाई रविवार से शुरू हो कर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी चार नवंबर शुक्रवार को समाप्त होगा। चातुर्मास में मांगलिक कार्य नहीं किए जाते, क्योंकि भगवान श्री हरि विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा के लिए पाताल में चले जाते हैं।
व्रत और तपस्या का माह– भगवान विष्णु के आशीर्वाद के बिना मांगलिक कार्य शुभ नहीं माने जाते। इस अवधि में मांगलिक कार्य भले ही शुभ नहीं माने जाते, लेकिन पूजा पाठ, जप-तप, साधना के लिए ये चार महीने श्रेष्ठ होते हैं। चातुर्मास को व्रत और तपस्या का माह कहा जाता है। इन चार महीनों में साधु संत यात्राएं बंद करके मंदिर या अपने मूल स्थान पर रहकर ही उपवास और साधना करते हैं। संपूर्ण वर्षा ऋतु में संयमित जीवनशैली अपनाने और आत्ममंथन की प्रक्रिया ही चातुर्मास कहलाती है। इस अवधि में भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

खानपान का रखें ध्यान- चातुर्मास के अंतर्गत श्रावण मास में पालक या पत्तेदार सब्जियों से परहेज करना चाहिए। इसके बाद भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध और कार्तिक मास में लहसुन-प्याज का त्याग करना उचित माना जाता है। चातुर्मास मास में हमारा भोजन पूर्ण रूप से सात्विक होना चाहिए।

न करें ये गलतियां- चातुर्मास में शहद, मूली, परवल और बैंगन खाना भी निषेध है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस दौरान पलंग पर शयन करने से देवी-देवता नाराज हो जाते हैं, अतः भूमि पर शयन उचित माना गया है।
अबूझ मुहूर्त में हो सकते हैं मांगलिक कार्य- चातुर्मास के दौरान भगवान श्री हरि विष्णु पाताल में योग निंद्रा के लिए चले जाते हैं। चार माह बाद पाताल से फिर भूलोक में आएंगे और कार्तिक मास में तुलसी के साथ उनका विवाह संपन्न होगा। इन चार महीनों में कोई शुभ कार्य नहीं होता, लेकिन अबूझ मुहूर्त में मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं।