अपने हौसले से दिव्यांग जनों के लिए मिसाल बने एम आर पाशा
दिव्यांगों की मदद करना बनाया जीवन का मकसद
बिजनौर। किसी शारीरिक कमी को अपनी कमजोरी न मानकर हौसला बुलंद कर दूसरों के लिए उदाहरण बनने वाले बहुत कम लोग होते हैं। क्षेत्र के गांव बुढ़नपुर निवासी दिव्यांग एमआर पाशा इसी का उदाहरण हैं, जो ना केवल दिव्यांगता को हराकर स्वयं आगे बढ़े, बल्कि हजारों दिव्यांगों के जीवन में आशा की किरण पैदा कर रहे हैं।
अपने इसी हौसले के दम पर वह दिव्यांगजनों का सहारा बन रहे हैं। उन्हें कृत्रिम अंग, व्हील चेयर, कैलिपर्स, ट्राई साईकिल, बैसाखी, सिलाई मशीन, कंबल, लिहाफ, गरम जैकेट आदि उपकरण वितरित कर मदद करने में जुटे हैं। बुढ़नपुर में 1984 में जन्मे एमआर पाशा जन्म से ही दिव्यांग हैं। स्योहारा के एमक्यू इंटर कालेज से 12वीं और धामपुर के आरएसएम डिग्री कालेज से बीएससी की शिक्षा प्राप्त की। एमआर पाशा बताते हैं कि बचपन से उन्होंने दिव्यांग होने के कारण बहुत सी चुनौतियों का सामना किया था, लेकिन इसे कभी अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। पढ़ाई के समय से ही उनके मन में अपने जैसों की मदद करने का विचार आया।

वर्ष 2000 में बनाया संगठन :
उन्होंने दिव्यांगजनों की समस्याएं हल कराने के लिए वर्ष 2000 में राष्ट्रीय विकलांग एसोसिएशन का गठन किया, जिसके वे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। पाशा बताते हैं कि इससे गरीबों, दिव्यांगों, वृद्ध व असहाय लोगों की सेवा कर रहे हैं। कई शिविर लगाकर दिव्यांगजनों के लिए कृत्रिम अंग वितरित करवाते हैं। अब तक हजारों लोगों की पेंशन बनवा चुके हैं। कैलीपर्स, ट्राई साईकिल, व्हीलचेयर सहित लिहाफ-कंबल भी वितरित करते हैं। धीरे-धीरे बड़ी संख्या में लोग उनसे जुड़ते चले गए। दिव्यांगजनों की मांगों के लिए धरना प्रदर्शन भी करते हैं। वह गांव में जूनियर हाई स्कूल चलाते है, जिससे अपना जीवन-यापन करते हैं। एमआर पाशा का सपना है कि वे वृद्धाश्रम खोलें और कैलिपर्स बनाने की फैक्ट्री भी लगाना चाहते हैं।