प्राकृतिक खेती मुख्य रूप से सूक्ष्म जीवों का ही एक खेल है
हम अपने लिए भौतिक संसाधनों की प्राप्ति की होड़ में और अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लालच में ही अपनी फसलों से अधिक से अधिक उत्पादन लेना चाहते हैं। और अपनी फसलों से अधिक से अधिक उत्पादन लेने के लालच में ही हम अपने खेतों में, अपनी फसलों में जाने अनजाने में बिना सोचे समझे रासायनिक उर्वरकों एवं फसल सुरक्षा रसायनों कीटनाशी, फफूंदीनाशी व खरपतवारनाशी का प्रयोग बेतहाशा मात्रा में करते हैं। इस वजह से हमारी मिट्टी में रहने वाले जीव और सूक्ष्म जीव मर गए हैं। मिट्टी में सूक्ष्म जीवों के नहीं होने की वजह से हमारे खेतों में पड़ा अपशिष्ट पदार्थ अर्थात एल जैव पदार्थ अब नहीं सडता है, क्योंकि जैव पदार्थ, अपशिष्ट पदार्थ को सड़ाने के लिए मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की उपलब्धता एवं उनकी क्रियाशीलता बहुत जरूरी है। जब जैव पदार्थ, अपशिष्ट पदार्थ मिट्टी में नहीं सड़ता है, तो ह्यूमस नहीं बनता है। इस वजह से हमारे खेतों में जीवांश कार्बन की मात्रा नहीं बढ़ती है। अपने खेतों की मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा को बढ़ाने के लिए जरूरी है कि खेतों में सूक्ष्म जीवों की उपलब्धता को उनकी क्रियाशीलता को बढ़ाया जाए और अपने खेतों की मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या को बढ़ाने के लिए ही हम घनजीवामृत, बीजामृत और जीवामृत के माध्यम से सूक्ष्मजीवों की संख्या को बढ़ाते हैं।

एक प्लास्टिक के ड्रम में अपने गांव या जंगल के किसी पुराने बड़ के पेड़, पीपल के पेड़ या पाखड के पेड़ के नीचे की मिट्टी, जिसमें कभी कोई रसायन ना गया हो, सूक्ष्म जीवाणु युक्त मिट्टी को एक ड्रम में डालकर उसमें गाय का गोबर, गोमूत्र, दलहन का आटा (बेसन) और गुड़ या चीनी डालकर ड्रम को पानी से भरकर उसे प्रतिदिन एक डंडे की सहायता से उस घोल को चलाते हैं। कुछ दिन बाद उस ड्रम में काले रंग के नेगेटिव पैथोजन (बैक्टीरिया) ऊपर आ जाते हैं। उन्हें छानकर ड्रम से हटा दिया जाता है। याद रहे, सूक्ष्मजीवों की खुराक के लिए 3 किलो दलहन का आटा (बेसन) और 3 किलो गुड़ या चीनी 15 दिन के अंतराल पर ड्रम में डालकर डंडे की सहायता से हिलाते रहें। जैसे-जैसे वक्त बीतेगा, सूक्ष्म जीवों की संख्या में इजाफा होता जाएगा। ध्यान रहे सूक्ष्म जीवों की संख्या में इजाफा होने के साथ-साथ उनके खाने के लिए आहार/ भोजन (गुड या चीनी व दलहन का आटा /बेसन) की मात्रा में भी इजाफा करते रहें। सही मायने में चार से छ: महीने में इस घोल का रंग नारंगी/ मौसमी के जूस के रंग के समान दुर्गंध युक्त कुछ चिपचिपा सा कुछ गाढा सा हो जाएगा। तब समझ लीजिए, कि हमारा जीवामृत घोल बनकर तैयार हो गया है। इसे अपने खेतों में सूक्ष्मजीवों की संख्या को बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। जीवामृत घोल को सिंचाई के माध्यम से या छिड़काव के माध्यम से किसी भी समय अपने खेत में प्रयोग कर सकते हैं। जीवामृत का प्रयोग बरसात के दिनों में करना सबसे बेहतर रहता है, क्योंकि उस समय सभी खेतों में नमी बरकरार रहती है। सूक्ष्म जीवों को अपना काम करने के लिए खेतों में नमी का रहना बहुत जरूरी है। हमारे द्वारा तैयार जीवामृत घोल जो लगभग 200 लीटर होगा, वह 10 एकड़ खेत के लिए पर्याप्त रहता है। सूक्ष्म जीव हमारे खेत में सही तरह से पहुंच जाने के बाद यह सूक्ष्म जीव खेत में पड़े अपशिष्ट पदार्थ, जैव पदार्थों को खाकर ह्यूमस में परिवर्तित कर देंगे और हमारे खेत में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ जाएगी। सूक्ष्म जीवों की क्रियाशीलता और उनकी उपलब्धता को बनाए रखने के लिए यह बेहतर रहेगा, कि खेत के चारों ओर मेढ़ पर 4 या 6 पेड़ मौजूद रहे और खेत में नमी बनी रहे।
जब हमारे खेत में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ जाएगी, तो हमारी मिट्टी की जैविक दशा सुधरने के साथ-साथ भौतिक और रासायनिक दशा भी सुधर जाएगी। हमारे खेत में जीवांश कार्बन की मात्रा जब जीरो पॉइंट 8 से 1 परसेंट तक पहुंच जाएगी, तब हमें अपने खेतों में किसी भी तरह की रासायनिक उर्वरकों को देने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। कीट एवं बीमारियों का प्रकोप भी बहुत कम होगा। सिंचाई की भी कम आवश्यकता होगी, जिससे हमें भू-गर्भ जल की बचत होगी। जैव- विविधता भी बरकरार रहेगी। पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होगा। फसल उत्पादन लागत भी बहुत कम आएगी। जो उत्पादन हमें प्राप्त होगा, वह गुणवत्तापूर्ण होगा, जिसके खाने से हम, आप और सब नाना प्रकार की गंभीर बीमारियों की चपेट में आने से बच जाएंगे। हम सब शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे और भविष्य में हम और हमारे बच्चे इस धरती पर खुशी के साथ जी सकेंगे।