संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा के बिना “विश्व हिंदी दिवस” का क्या औचित्य?

विश्व हिंदी दिवस (10 जनवरी)

संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा के बिना विश्व हिंदी दिवस का क्या औचित्य?

गौरव अवस्थी रायबरेली

विश्व हिंदी दिवस हर साल 10 जनवरी को मनाए जाने की परंपरा 16 वर्ष पुरानी है। हालांकि, इसका बीज 47 वर्ष पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने रोप दिया था। उन्हीं के नेतृत्व में वर्ष 1975 में 10 से 14 जनवरी तक नागपुर में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति (वर्धा) के तत्वावधान में पहला विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित हुआ। इस प्रथम सम्मेलन में 30 देशों के  प्रतिनिधियों ने प्रतिभाग किया। यहीं से ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ मनाए जाने की प्रथा प्रारंभ हुई। अलग-अलग देशों में अलग-अलग तिथियों पर विश्व हिंदी सम्मेलन मनाए जाने लगे। पहले हर चार वर्ष और अब तीन वर्ष पर विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित हो रहे हैं। 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन फिजी में फरवरी में होने वाला है।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इस पहल को आगे बढ़ाते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वर्ष 2006 में 10 जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ घोषित करते हुए नई परंपरा की नींव रखी। यह परंपरा भी वर्ष-प्रतिवर्ष परवान चढ़ती जा रही है पर वैश्विक स्तर पर अपनी मजबूत स्थिति दर्ज कराने के बाद भी हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनने का लक्ष्य अभी तक प्राप्त नहीं कर सकी है। क्यों? इस पर सरकारी और ‘अ-सरकारी’ (हिंदी भाषी समाज) दोनों की ओर से मंथन नितांत आवश्यक है।

यह सच है कि दो सौ साल तक भारत पर राज करने वाले अंग्रेजों ने भारत में ही हिंदी को मिटाने की कोशिशें की लेकिन इसके उलट एक रोचक तथ्य यह भी है कि ब्रिटिश हुकूमत ने ही जाने-अनजाने हिंदी को हिंदुस्तान की सीमा से बाहर बोले जाने का रास्ता भी खोला। सभी जानते हैं कि अंग्रेजों ने अपने द्वारा छल बल से कब्जाए गए द्वीप (अब देश) मारीशस में अपनों की सुविधा के लिए 1893 में पहली बार भारतीयों को बंधुआ श्रमिकों के तौर पर ले जाया गया। इसमें अधिकांश बिहार, उत्तर प्रदेश और कुछ गुजरात के भी थे। इन्हें पहचान के रूप में ‘गिरमिटिया मजदूर’ नाम भी मिला। इन्हीं बंधुआ मजदूरों में कोई अपने साथ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ ले गया और कोई हिंदी के प्रबल पक्षधर एवम आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद द्वारा लिखित ‘सत्यार्थ प्रकाश’। इन्हीं धार्मिक पुस्तकों को पढ़ते और अपनी संस्कृति-संस्कार के बल पर गिरमिटिया मजदूरों ने भारत गणराज्य के बाहर हिंदी का अन्य देशों में पहली बार प्रवेश सुनिश्चित कराया।

कहा जा सकता है कि इन्हीं पूर्वजों की मातृभाषा के प्रति निष्ठा की बदौलत ही हिंदी 132 देशों में बोली-समझी जा रही है और आज दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। सभी जानते हैं कि संख्या के लिहाज से दुनिया में सर्वाधिक लोग अंग्रेजी बोलते हैं। दूसरे नंबर पर चीन की मंदारिन भाषा है। भारत समेत दुनियाभर  में करीब 70 करोड़ लोगों की प्रथम भाषा हिंदी है। दूसरी भाषा के रूप में हिंदी को अपनाने वालों की संख्या जोड़ने पर यह आंकड़ा 80 करोड़ के आगे पहुंच चुका है। दिन-प्रतिदिन हिंदी तेजी से तरक्की कर रही है। सोशल मीडिया में भी हिंदी छा रही है। तकनीक में हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। अब तो भारत में मेडिकल की पढ़ाई हिंदी के माध्यम से प्रारंभ होने के रास्ते खुलने लगे हैं।

विश्व हिंदी दिवस’ को मान्यता क्यों नहीं?~ अब महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि विश्व की तीसरी सबसे बड़ी भाषा होने के बावजूद हिंदी दुनिया में अपेक्षित सम्मान क्यों प्राप्त नहीं कर पा रही है। संयुक्त राष्ट्र ने बेशक 22 जून 2022 को जरूर संयुक्त राष्ट्र की सूचनाएं हिंदी में भी देना स्वीकार कर लिया है लेकिन क्या केवल इतना पर्याप्त है? हम हिंदी भाषा भाषी क्या केवल इस निर्णय से ही संतोष कर सकते हैं? शायद आप भी कहें-‘नहीं, कभी नहीं’। संयुक्त राष्ट्र में सदस्य देशों की संख्या करीब 191 है। नियमानुसार 129 देशों का समर्थन मिलने पर ही हिंदी संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बन सकती है। यह सोचने वाली बात है कि जब भारत सरकार के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र 20 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’  घोषित कर सकता है तो पिछले 16 वर्षों से निरंतर मनाए जा रहे ‘विश्व हिंदी दिवस’ को मान्यता क्यों नहीं दे रहा? जबकि हिंदी का अपना दावा पहले से अधिक मजबूत है और लगातार होता भी जा रहा है। इसलिए भारत सरकार को भी हिंदी को दुनिया में सम्मान दिलाने को दूसरे सदस्य देशों की सहमति के लिए सघन अभियान अब शुरू कर देना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र में आधिकारिक भाषा के दर्जे के बिना विश्व हिंदी दिवस मनाए जाने का कोई औचित्य नहीं है।

हिंदी की स्वीकार्यता और उपयोग दिनोंदिन बढ़ रहा~ इसमें कोई दो राय नहीं कि हिंदी की स्वीकार्यता और उपयोग दिनोंदिन बढ़ रहा है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई संस्थाएं हिंदी के प्रचार प्रसार में अहम योगदान दे रही हैं। हिंदी के बढ़ते आंकड़े इसीका प्रतिफल हैं। हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए अब दबाव की ‘नीति’ अपनाने की रणनीति पर हम हिंदी भाषियों और विदेशों में रह रहे भारतीयों को आगे बढ़ना होगा। सबके सम्मिलित प्रयासों से ही इंतजार की घड़ियां खत्म होंगी और निश्चित ही हिंदी को अपना अपेक्षित ‘सम्मान’ सहज ही प्राप्त हो सकेगा। वैश्विक स्तर पर सम्मान प्राप्त होने पर ही हमारे उन भाषाई पूर्वजों-भारतेंदु हरिश्चंद्र, स्वामी दयानंद सरस्वती, पंडित प्रताप नारायण मिश्र, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, बाल मुकुंद गुप्त, पंडित माधवराव सप्रे समेत अन्यान्य द्वारा शुरू किया गया संघर्ष पूर्ण होगा, जिसके लिए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन होम कर दिया।

गौरव अवस्थी
रायबरेली
9415034340

Published by Sanjay Saxena

पूर्व क्राइम रिपोर्टर बिजनौर/इंचार्ज तहसील धामपुर दैनिक जागरण। महामंत्री श्रमजीवी पत्रकार यूनियन। अध्यक्ष आल मीडिया & जर्नलिस्ट एसोसिएशन बिजनौर।

Leave a Reply

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: