सिद्धिबली धाम, कोटद्वार
सिद्धबली मंदिर, भारत के उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले के कोटद्वार शहर में अवस्थित है। सिद्धबली मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है और साल भर हजारों श्रद्धालु यहां दर्शन को पहुंचते हैं। कोटद्वार का पुराना नाम “खोहद्वार” था, जिसका अर्थ है खोह नदी का प्रवेश द्वार, क्योंकि यह खोह नदी के तट पर स्थित है। यह राज्य के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है और उत्तराखंड राज्य में मुख्य प्रवेश द्वारों में से एक है।

भगवान हनुमान का मंदिर, सिद्धबली धाम
स्थान~ उत्तराखण्ड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले का कोटद्वार
खुलने का समय~ 4.45 AM
भोग~ गुड़, लड्डू
नजदीकी आकर्षण~ तारकेश्वर मंदिर, लैंसडाउन, जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क

सिद्धबली धाम में पवन पुत्र हनुमान का विशाल मंदिर बना हुआ है, मुख्य द्वार से कुछ सीढ़ी चढ़ने के बाद श्री हनुमान के दर्शन होते हैं। यहाँ हनुमान विशाल प्रतिमा के रूप में विराजमान हैं। मुख्य प्रतिमा के अतिरिक्त अन्य देवी देवताओं की प्रतिमा और दीवारों पर चित्र भी बने हुए हैं। मंदिर में मंगलवार और शनिवार में विशेष भीड़ रहती है।
ऊपर से नीचे देखने पर बड़ा ही सुन्दर नज़ारा दिखता है, सैलानी इस मनोरम दृश्य का फोटो लेना नहीं भूलते। हनुमान जी के दर्शन करके यात्री मंदिर परिसर में ही स्थित शिवलिंग का जल से अभिषेक करते हैं। यहीं पर नाथ संप्रदाय की धूनी जल रही है।
इसके आगे शनिदेव का मंदिर बना हुआ है, जहाँ श्रद्धालु शनि देव को तेल चढाते हैं। शनिदेव के दर्शन करके श्रद्धालु नीचे की तरफ उतरते हैं। इस मार्ग पर भंडारे का स्थल पड़ता है, जिन श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी हो जाती है, वह यहाँ भंडारा करवाते हैं। मुख्य मंदिर के नजदीक ही दुर्गा माता, शिव मंदिर और फलहारी बाबा की समाधी स्थल है।
सिद्धबली मंदिर की मान्यता
गंगाद्वारोत्तरेभागे गंगायाः प्राग्विभागके।
नदी कौमुद्धती ख्याता सर्वदारिद्रनाशिनी।।
अर्थात: गंगाद्वार (हरिद्वार) के उत्तरपूर्व यानि इशान कोण के कौमुद तीर्थ के किनारे कौमुदी नाम की प्रसिद्ध दरिद्रता हरने वाली नदी निकलती है।
…जिस प्रकार गंगाद्वार माया क्षेत्र व वर्तमान में हरिद्वार एवं कुब्जाम्र ऋषिकेश के नाम से प्रचलित हुए, उसी प्रकार कौमुदी वर्तमान में खोह नदी नाम से जानी से जानी जाने लगी, जो कौमुदी का अपभ्रंश है और डांडामण्डी क्षेत्र एवं हेमवन्ती (हयूल) नदी के दक्षिण से निकली है। इस पौराणिक नदी के तट पर श्री सिद्धबली धाम पौराणिक सिद्धपीठ के रूप में विराजमान है। इस पवित्र धाम में जो साक्षात शिव द्वारा धारण, जिस पर शिवजी ने स्वयं निवास किया है, अपने आप में पूज्यनीय है।
श्री सिद्धबली धाम की महत्ता एवं पौराणिकता के विषय में कई जनश्रुतिया एवं किवदंतियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि स्कन्द पुराण में वर्णित जो कौमुद तीर्थ है, उसके स्पष्ट लक्षण एवं दिशाएं इस स्थान को कौमुद तीर्थ होने का गौरव देते हैं। स्कन्द पुराण के अध्याय 116 (श्लोक 6) में कौमुद तीर्थ के चिन्ह के बारे में बताया गया है कि…
तस्य चिन्ह प्रवक्ष्यामि यथा तज्ज्ञायते परम्। कुमुदस्य तथा गन्धो लक्ष्यते मध्यरात्रके।।
अर्थात: महारात्रि में कुमुद (बबूल) के पुष्प की गंध लक्षित होती है। प्रमाण के लिए आज भी इस स्थान के चारों ओर बबूल के वृक्ष विद्यमान हैं। कुमुद तीर्थ के विषय में कहा गया है कि पूर्वकाल में इस तीर्थ में कौमुद (कार्तिक) की पूर्णिमा को चन्द्रमा ने भगवान शंकर को तप कर प्रसन्न किया था। इसलिए इस स्थान का नाम कौमुद पड़ा। शायद कोटद्वार कस्बे को तीर्थ कौमुद द्वार होने के कारण ही कोटद्वार नाम पड़ा। कहते हैं कि सिद्धबाबा ने इस स्थान पर कई वर्ष तक तप किया था।
श्री सिद्धबाबा को लोक मान्यता के अनुसार साक्षात गोरखनाथ माना जाता है जो कि कलियुग में शिव के अवतार जाने जाते हैं। गुरु गोरखनाथ भी बजरंगबली की तरह एक यति हैं, जो अज़र और अमर हैं। इस स्थान को गुरु गोरखनाथ के सिद्धि प्राप्त स्थान होने के कारण सिद्ध स्थान कहा गया है।
हनुमानजी औऱ गुरु गोरखनाथ का युद्ध
नाथ सम्प्रदाय एवं गोरख पुराण के अनुसार गोरखनाथ जी के गुरु मछेन्द्रनाथ जी पवन पुत्र बजरंगबली के आज्ञानुसार त्रियाराज्य की शासक रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे। परन्तु उनके परम तेजस्वी शिष्य गोरखनाथ जी को जब यह ज्ञात होता है तो वह प्रण करते हैं कि उन्हें किसी भी प्रकार उस राज्य से मुक्त करेंगे। वे अपने गुरु को मुक्त करने हेतु त्रियाराज्य की ओर प्रस्थान करते हैं। मार्ग में पवन पुत्र बजरंग बली अपना रूप बदलकर गोरखनाथ का मार्ग रोकते हैं। तब दोनों यतियों के मध्य भयंकर युद्ध होता है। हनुमान जी गोरखनाथ के तप बल से प्रसन्न होकर अपने वास्तविक रूप में आते हैं और गुरु गोरखनाथ जी से कहते हैं कि – “मैं तुम्हारे तप बल से अति प्रसन्न हूं जिस कारण तुम कोई भी वरदान मांग लो।”
तब श्री गुरु गोरखनाथ जी कहते हैं कि आपको इस स्थान में प्रहरी का तरह रहना होगा और भक्तों का कल्याण करना होगा। विश्वास है कि आज भी यहां वचनबद्ध होकर बजरंग बली जी साक्षात उपस्थित रहते हैं। तब से ही इस स्थान पर बजरंग बली की पूजा की विशेष महत्ता है और इन्हीं दो यतियों (श्री बजरंग बली जी एवं गुरु गोरखनाथ) जो सिद्ध एवं बली है, के कारण सिद्धबली कहा गया है।
गुरु नानक जी ने किया था विश्राम
इस स्थान पर सिखों के प्रथम गुरु ‘गुरुनानक’ जी ने भी कुछ दिन विश्राम किया। ऐसा कहा जाता कि इस स्थान को सभी धर्मावलम्बी समान रूप से पूजते एवं मानते हैं। यह स्थान श्री सिद्धबाबा (गुरु गोरखनाथ एवं उनके शिष्यों) का तपस्थान रहा है। यहाँ बाबा सीताराम जी, बाबा गोपाल दास जी, बाबा नारायण दास जी, महंत सेवादास जी जैसे अनेक योगियों एवं साधुओं का साधना स्थल रहा है।
फलहारी बाबा समाधि स्थल
यहाँ पर ही परमपूज्य “फलाहारी बाबाजी ने जीवनपर्यन्त फलाहार लेकर ही कई वर्ष तक साधना की थी। भक्तों द्वारा विश्वास किया जाता है कि जो भी पवित्र भावना से कोई मनौती श्री सिद्धबली बाबा से मांगता है, अवश्य पूर्ण होती है। मनौती पूर्ण होने पर भक्तजन भण्डारा आदि करते हैं।
श्री सिद्धबली बाबा को बरेली, बुलन्दशहर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बिजनौर, हरिद्वार आदि तक की भूमि का क्षेत्रपाल देवता के रूप में भी पूजा जाता है।


कैसे पहुंचें कोटद्वार ?
कोटद्वार; उत्तराखंड का आठवां सबसे बड़ा शहर है। यह भारत की राजधानी दिल्ली से 230 किमी और हरिद्वार से 76 किमी दूर है। कोटद्वार अपने प्रसिद्ध और पवित्र सिद्धबली मंदिर के लिए प्रसिद्ध है जो कोटद्वार से 2 किमी की दूरी पर स्थित है।
हवा मार्ग: 105 किमी की दूरी पर स्थित जॉली ग्रांट हवाई अड्डा कोटद्वार का निकटतम हवाई अड्डा है। जॉली ग्रांट हवाई अड्डे से कोटद्वार के लिए टैक्सी और बस उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग: कोटद्वार भारत के प्रमुख शहरों के साथ रेलवे द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। भारत के सबसे पुराने रेलवे स्टेशनों में से एक कोटद्वार में स्थित है।
सड़क मार्ग: कोटद्वार उत्तराखंड राज्य के प्रमुख गंतव्यों के लिए सड़कों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। दिल्ली से कोटद्वार के लिए बसें आसानी से उपलब्ध हैं। कोटद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग 119 से जुड़ा हुआ है।
कोटद्वार के आसपास प्रमुख पर्यटन स्थल

तारकेश्वर महादेव मंदिर
तारकेश्वर महादेव मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। तारकेश्वर मंदिर जिले के सबसे अधिक देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है। यह लैंसडाउन से 38 किमी (24 मील) की दूरी पर 1,800 मीटर (5,900 फीट) की ऊंचाई पर लैंसडाउन ऑन-रोड लैंसडाउन-डेरियाखल के उत्तर-पूर्व में स्थित है। तारकनाथ मंदिर हुगली जिले के तारकेश्वर गांव का प्रमुख आकर्षण है। भगवान तारकनाथ को समर्पित तारकनाथ मंदिर का निर्माण वर्ष 1729 में राजा भरमल्ला ने करवाया था। मंदिर मध्य पश्चिम बंगाल शैली में मंदिर वास्तुकला की शैली में बनाया गया है जिसमें “अचला” और “नटमंदिर” जैसी विशेषताएं हैं।
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क भारत के सबसे पुराने राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है। पार्क में बंगाल टाइगर, तेंदुआ, हिरण, हाथी और भालू आसानी से देखे जा सकते हैं। इकोटूरिज्म और सफारी वाहनों का संचालन कई पर्यटकों को कोटद्वार और अन्य गढ़वाल क्षेत्रों की ओर आकर्षित करता है।


लैंसडाउन
लैंसडाउन (नगर) भारत के सबसे शांत हिल स्टेशनों में से एक है। यह उत्तराखंड राज्य के पौड़ी गढ़वाल जिले में घने ओक और नीले देवदार के जंगलों से घिरा समुद्र तल से 1,700 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। लैंसडाउन को इसका नाम लॉर्ड लैंसडाउन से मिला, जो 1888 – 1894 की अवधि के दौरान भारत के वायसराय थे। वर्तमान में, लैंसडाउन में भारतीय सेना के गढ़वाल राइफल्स डिवीजन का कमांड ऑफिस है। (साभार)