वाहन पार्किंग की व्यवस्था क्यों नहीं करते स्कूल कॉलेज!

स्कूलों की छुट्टियों के समय सड़कों पर लगने वाले जाम से जनता हल्कान

लखनऊ की तरह होने चाहिए कड़े निर्देश

वाहन पार्किंग की व्यवस्था क्यों नहीं करते स्कूल कॉलेज?

प्रतीकात्मक चित्र

स्कूलों में एक घंटा पहले होगी बच्चों की एंट्री, बनेगा ट्रैफिक कंट्रोल रूम

बिजनौर। स्कूलों की छुट्टियों के समय सड़कों पर लगने वाले जाम से जनता हल्कान है। स्कूल प्रबंधन द्वारा पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण सड़कों पर रोजाना दिन में भयंकर जाम लगता है और जनता भारी परेशानी से जूझती है। इमरजेंसी में कहीं जाना टेढ़ी खीर साबित होता है। उस पर जाम में फंसे वाहनों के हॉर्न की आवाज पर्यावरण में ध्वनि प्रदूषण को बढ़ा रही है।

जनपद बिजनौर में स्कूलों की छुट्टियों के समय सड़कों पर निकलना आम व्यक्ति के लिए टेढ़ी खीर से कम नहीं है। किसी भी स्कूल प्रबंधन द्वारा पार्किंग की कोई व्यवस्था न किए जाने के कारण लगने वाले जाम से जनता हल्कान है। रोजाना दिन में लगने वाले भयंकर जाम से जनता को भारी परेशानी से जूझना पड़ता है। इमरजेंसी में कहीं जाने वाले का तो ऊपर वाला ही मालिक। जाम में फंसे वाहनों के हॉर्न की आवाज से पर्यावरण में ध्वनि प्रदूषण को बढ़ावा मिल रहा है।

प्रतीकात्मक चित्र

बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन!

बिजनौर में भी प्रदेश की राजधानी की तरह ही स्कूल प्रबंधन को कड़े निर्देश देकर व्यवस्था सुचारू करानी चाहिए। इस संबंध में जिले की आम जनता को जिला प्रशासन से गुहार लगानी चाहिए। …लेकिन समस्या बेहद बड़ी है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधे कौन! अभिभावकों को डर सताता है कि स्कूल वाले नाराज हो गए तो उनके बच्चे का भविष्य न खराब कर दिया जाए। सिर्फ पार्किंग ही एक समस्या नहीं है। एडमिशन फीस, कॉपी किताबों का खर्च, ड्रेस आदि सब कुछ उन्हें स्कूल से या फिर उनकी बताई गई जगह से ही खरीदना मजबूरी है। हालात इस कदर खराब हैं कि छोटे~छोटे बच्चों की पढ़ाई का खर्चा भयावय रूप ले चुका है।

हाइवे पर बसे हैं बड़े लोगों के स्कूल

अधिकतर स्कूल कॉलेज नेशनल हाईवे किनारे संचालित किए जा रहे हैं। यह सभी सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से बड़े लोगों में शुमार हैं। इसलिए इनसे पंगा लेने से सभी डरते हैं। इनमें नुमाइश ग्राउंड से मेरठ रोड, सिविल लाइंस से नजीबाबाद~हरिद्वार और कोटद्वार रोड, नूरपुर मुरादाबाद रोड आदि पर स्कूलों के कारण जाम एक आम समस्या है।

मजबूर है मीडिया?

जनसमस्या को उजागर करने और उसके निदान तक अंजाम तक पहुंचाने वाला मीडिया खामोश है। वजह साफ है, बड़े ग्रुप विज्ञापनों के नाम पर इन स्कूल कॉलेज से भारी भरकम रकम उगाहते हैं। आखिरकार इसी उगाही गई रकम से स्टाफ को तनख्वाह दी जाती है। छोटे स्तर वाले, अपने स्तर के हिसाब से ही इन लोगों के हाथों की कठपुतलियां बने रहते हैं?

प्रतीकात्मक चित्र

लखनऊ में क्या हुई व्यवस्था?

दरअसल पिछले महीने लखनऊ के जिलाधिकारी सूर्य पाल गंगवार ने एक अनूठी पहल करते हुए सभी स्कूलों को निर्देश दिया कि वे अपने परिसरों में ट्रैफिक नोडल अधिकारियों की देखरेख में ट्रैफिक कंट्रोल रूम स्थापित करें ताकि उनके संस्थानों के बाहर ट्रैफिक जाम न हो। डीएम ने स्कूलों को यातायात व्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए मास्टर प्लान बनाकर उसका अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा।
स्कूलों की खुलने और छुट्टी के समय लगने वाले जाम की समस्या को दूर करने के लिए डीएम सूर्यपाल गंगवार ने कलक्ट्रेट स्थित सभागार में दस स्कूलों के ट्रैफिक नोडल अधिकारियों के साथ बैठक की। डीएम ने कहा कि सभी स्कूलों से ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए मास्टर प्लान मांगा गया था, प्लान तो दिया गया लेकिन इसका अनुपालन नहीं कराया गया।

स्कूलों से आए इस तरह के प्रेजेंटेशन~

जयपुरिया स्कूल द्वारा बताया गया कि उनके विद्यालय के बाहर सुबह 7.20 से 7.30 बजे तक कुल 10 मिनट जाम लगता है और अपराह्न 2 बजे से 2.30 बजे तक 30 मिनट जाम लगता है। विद्यालय में तीन गेट हैं। प्रत्येक गेट पर एक एक नोडल और सपोर्टिंग स्टाफ की ड्यूटी लगाई गई है। क्राइस्ट चर्च की प्रेजेंटेशन से साफ हुआ कि विद्यालय के अंदर पर्याप्त जगह होने के बाद भी वाहन बाहर पार्क किये जाते हैं। इन्हें निर्देश दिए गए कि सभी वाहनों को विद्यालय परिसर के अंदर पार्क किया जाए। सेंट फ्रांसिस की प्रेजेंटेशन में ज्ञात हुआ कि स्टाफ के वाहन तो विद्यालय के अंदर पार्क किये जाते हैं लेकिन वैन बाहर पार्क होती हैैं। इस पर निर्देश दिए गए कि स्टाफ के वाहन, पूल्ड वाहन, अभिभावकों के वाहन व वैन इत्यादि परिसर के अंदर पार्क किए जाएं। सीएमएस द्वारा बताया गया कि उनके विद्यालय में लगभग 1735 प्राईवेट वाहन आते हैं। परिसर के अंदर पार्किंग के लिए कोई प्लेस नहीं है। विद्यालय द्वारा नियर बाई पार्किंग प्लेस की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के साथ ही निर्देश दिए कि विद्यालय अभिभावकों को स्कूल बस से अपने बच्चों को भेजने के लिए प्रेरित करें।

स्कूलों को ये कदम उठाने होंगे~ 1-नोडल अधिकारी की तैनाती। 2-स्कूल के सभी गेट पर सुरक्षा कर्मियों की तैनाती। 3-स्टूडेंट्स के स्कूल आने के साधनों का विवरण। 4-हर स्कूल में सेंट्रलाइज्ड एनाउंसमेंट सिस्टम। 5-सभी गेट्स पर सीसीटीवी। 6-स्कूल पार्किंग में पैरेंट्स के वाहन भी पार्क कराए जाएं। 7-स्कूलों के बाहर बिना ड्राइवर गाड़ी न पार्क की जाए, वरना चालान। 8-बच्चों को 15 मिनट पहले नहीं, एक घंटा पहले स्कूल में एंट्री की सुविधा।


लॉरेटो कॉन्वेंट प्रतिनिधि को फटकार~

बैठक में उपस्थित लॉरेटो कांवेंट स्कूल, लखनऊ के प्रतिनिधि द्वारा कोई भी जानकारी उपलब्ध न कराने पर उन्हें कड़ी फटकार लगाई गई एवं निर्देशित किया गया कि समुचित कार्य योजना के साथ संबंधित व्यक्ति को ही बैठक में भेजा जाए। सेठ एमआर जयपुरिया स्कूल गोमतीनगर के प्रतिनिधि को कठोर चेतावनी के साथ निर्देशित किया गया कि पैरेंट्स के वाहन भी परिसर के अंदर ही खड़े कराए जाएं अन्यथा विद्यालय कि एनओसी वापस लेने के संबंध में नियमानुसार एक्शन होगा।

Published by Sanjay Saxena

पूर्व क्राइम रिपोर्टर बिजनौर/इंचार्ज तहसील धामपुर दैनिक जागरण। महामंत्री श्रमजीवी पत्रकार यूनियन। अध्यक्ष आल मीडिया & जर्नलिस्ट एसोसिएशन बिजनौर।

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